खुम्रियात
रियाज़ खैराबादी
ये काली काली बोतलें जो हैं शराब की
रातें हैं इनमें बंद हमारे शबाब की...
जनाबे शेख ने जब पी तो मूंह बनाकर कहा
मज़ा भी तल्ख़ है और बू भी खुशगवार नहीं...
लुत्फ़ ए मय तुझसे क्या कहूँ जाहिद,
हाय कमबख्त तूने पी ही नहीं -दाग दहलवी
*जाहिद - धर्मात्मा
मुझतक कब उसकी बज़्म में आता था दौर ए जाम
साकी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में - ग़ालिब
जिन्हें प्यास है उन्हें कम से कम
जिन्हें प्यास कम उन्हें दम ब दम,
मेरे साक़िया ये तेरे मैकदे का
निजाम है या मजाक
ये बज्मे मय है यहाँ कोता दस्ती में है महरूमी,
जो बढ़कर खुद उठा ले हाथ में, मीना उसीका है...
हौंसला ....जुर्रत... हिम्मत
मुझे पीने दे पीने दे पीने दे तेरे जामे लाली में,
अभी कुछ और है कुछ और है कुछ और है साकी...
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