उनवान - title
उस गैरते नाहीद की हर तान है दीपक,
शोला सा लपक जाए आवाज़ तो देखो... - मोमिन
*गैरत - शर्म
* नाहिद - शुक्र का तारा
अभी सुन लो तो शायद सुक सको तुम दिल के नगमों को,
की अब इसकी सदा कुछ खुद ब खुद कम होती जाती है
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं,
होंठों पे लतीफे हैं आवाज़ में छाले हैं
जरा बोलते रहियो ए हम्सफीरों,
मैं आवाज़ दूँ तुम भी आवाज़ देना - सफी लखनऊवी
*हम्सफीरों - एक जुबाँ बोलने वाले
खयाले खातिरे एहबाब चाहिए हर दम,
अनीस ठेस न लग जाए आबगीनों को - मीर अनीस
*आबगीनों - कांच के दिलों
शहर की रात और मैं नाशादो नाकारा फिरूं,
जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूं,
गैर की बस्ती है कब तक दर ब दर मारा फिरूं,
ऐ गमे दिल क्या करूँ, ऐ वहशते दिल क्या करूँ...
झिलमिलाते कुमकुमों की राह में जंजीर सी,
रात के हाथों में दिन की मोहिनी तस्वीर सी,
मेरे सीने पे मगर चलती हुई शमशीर सी,
ऐ गमे दिल क्या करूँ, ऐ वहशते दिल क्या करूँ..
ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बेड़ा,
हम अपने शहर में होते तो घर आ गए होते...
सो गई शःहर की साड़ी सड़कें,
एक आवारा मगर बाकी है...
*बाईस - वजह
शउर - पहचान
उस गैरते नाहीद की हर तान है दीपक,
शोला सा लपक जाए आवाज़ तो देखो... - मोमिन
*गैरत - शर्म
* नाहिद - शुक्र का तारा
अभी सुन लो तो शायद सुक सको तुम दिल के नगमों को,
की अब इसकी सदा कुछ खुद ब खुद कम होती जाती है
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं,
होंठों पे लतीफे हैं आवाज़ में छाले हैं
जरा बोलते रहियो ए हम्सफीरों,
मैं आवाज़ दूँ तुम भी आवाज़ देना - सफी लखनऊवी
*हम्सफीरों - एक जुबाँ बोलने वाले
खयाले खातिरे एहबाब चाहिए हर दम,
अनीस ठेस न लग जाए आबगीनों को - मीर अनीस
*आबगीनों - कांच के दिलों
शहर की रात और मैं नाशादो नाकारा फिरूं,
जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूं,
गैर की बस्ती है कब तक दर ब दर मारा फिरूं,
ऐ गमे दिल क्या करूँ, ऐ वहशते दिल क्या करूँ...
झिलमिलाते कुमकुमों की राह में जंजीर सी,
रात के हाथों में दिन की मोहिनी तस्वीर सी,
मेरे सीने पे मगर चलती हुई शमशीर सी,
ऐ गमे दिल क्या करूँ, ऐ वहशते दिल क्या करूँ..
ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बेड़ा,
हम अपने शहर में होते तो घर आ गए होते...
सो गई शःहर की साड़ी सड़कें,
एक आवारा मगर बाकी है...
*बाईस - वजह
शउर - पहचान